कोई व्यक्ति चाहे वह कितना बड़ा सिद्ध तपस्वी ही क्यों न हो, किन्तु यदि वह अपनी सिद्धियों, शक्तियों, व तंत्र से किसी भी प्रकार के चमत्कार दिखा रहा है, तो सावधान हो जाइए ! यह आपके तथा आपके धन व परिवार, एवं समाज के लिए घातक हो सकता है ! यह केवल एक परामर्श नहीं, अपितु एक कठोर चेतावनी है, जिसे अनदेखा करने का परिणाम आत्मिक, मानसिक और भौतिक पतन के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता । इस चेतावनी का आधार सनातन अध्यात्म के उस परम रहस्य में छिपा है, जिसे आज का समाज पूरी तरह विस्मृत कर चुका है ।
इसका कारण यह है कि “जादू, चमत्कार” में तो छुपाने के लिए और “अध्यात्म” में आत्मिक अनुभूति, अध्यात्म विज्ञान से प्राप्त हुए व्यक्त किए जाने की सीमा से परे के ईश्वरीय अनुभवों के अतिरिक्त बाह्य रूप से प्रदर्शित करने, व्यक्त करने के लिए कुछ होता ही नहीं है, तो फिर वह चमत्कार दिखाना ही क्यों चाहता है ? जब अध्यात्म का संपूर्ण सार ही आंतरिक अनुभूति है, जिसे न तो शब्दों में पूर्णतः व्यक्त किया जा सकता है और न ही किसी भौतिक क्रिया द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है, तब यह प्रदर्शन का प्रयास ही इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि वह व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर नहीं, अपितु किसी अन्य ही स्वार्थपूर्ण मार्ग पर चल रहा है ।
इस गंभीर समस्या के आज समाज में इतने प्रचलित होने के पीछे कुछ गहरे कारण हैं । इसका सबसे प्रमुख कारण है “आध्यात्मिक निरक्षरता” । आम जनमानस अपने ही धर्म के मूल सिद्धांतों और शास्त्रों से अनभिज्ञ है । वह यह नहीं जानता कि योग-दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में इन सिद्धियों को समाधि अर्थात मोक्ष के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा (उपसर्ग) बताया है । जिस शक्ति-प्रदर्शन को आज का समाज किसी संत की योग्यता का प्रमाण मानता है, उसे हमारे महानतम ऋषि आध्यात्मिक पतन का लक्षण बताकर गए हैं । इसी अज्ञानता का लाभ उठाकर ढोंगी लोग समाज को भ्रमित करते हैं ।
दूसरा बड़ा कारण है “त्वरित समाधान की लालसा” । आज का व्यक्ति धैर्य और पुरुषार्थ के कठिन मार्ग पर नहीं चलना चाहता । वह अपनी समस्याओं का तत्काल, बिना किसी प्रयास के, चमत्कारी समाधान चाहता है । उसे ऐसा गुरु नहीं चाहिए जो उसे साधना का मार्ग बताए, उसे तो ऐसा बाजीगर चाहिए जो कोई चमत्कार करके उसकी समस्याओं को तुरंत समाप्त कर दे । समाज की यही आध्यात्मिक आलस्य और लालसा, इन चमत्कार दिखाने वाले बहरूपियों के लिए एक उर्वर भूमि का निर्माण करती है ।
तीसरा कारण है “धर्म का व्यवसायीकरण” । आज धर्म और अध्यात्म एक पवित्र साधना न रहकर एक उद्योग बन गए हैं । इस आध्यात्मिक बाज़ार में, अनुयायी एक ग्राहक की भाँति है, और उसे आकर्षित करने के लिए चमत्कार सबसे प्रभावी विपणन उपकरण (Marketing Tool) बन गया है । जितना बड़ा चमत्कार, उतना बड़ा नाम, उतनी अधिक भीड़ और उतना ही अधिक धन व वैभव । इस व्यवसायीकरण ने सच्चे, त्यागी और शांत संतों को पीछे धकेल दिया है और प्रदर्शन करने वाले, वाक्पटु बाजीगरों को मंच प्रदान कर दिया है ।
और चौथा कारण है सच्चे गुरुओं की पहचान के वास्तविक मापदंडों का अभाव । समाज यह भूल चुका है कि एक सच्चे संत की पहचान उसके चमत्कारों से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान, वैराग्य, करुणा, शांति और निःस्वार्थ आचरण से होती है । हमने गुणों के स्थान पर शक्तियों को महत्त्व देना प्रारंभ कर दिया है, और इसी भूल ने हमें पाखंडियों का सबसे सरल शिकार बना दिया है ।
किन्तु जहाँ समस्या है, वहाँ समाधान भी है । इस आध्यात्मिक पतन के अंधकार से बाहर निकलने का मार्ग भी हमारे शास्त्रों ने ही दिखाया है । इसका प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण समाधान है- व्यक्ति के स्वयं के “विवेक का जागरण” । प्रत्येक व्यक्ति को किसी का अनुयायी बनने से पूर्व स्वयं से यह प्रश्न पूछना होगा कि वह उस व्यक्ति के पास क्यों जा रहा है – आत्म-ज्ञान के लिए या अपनी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ? जिस दिन व्यक्ति का उद्देश्य शुद्ध हो जाएगा, उसी दिन वह ढोंगियों के आकर्षण से मुक्त हो जाएगा ।
दूसरा समाधान है “शास्त्रों के स्वाध्याय पर बल” । तथाकथित गुरुओं के प्रवचनों पर आँख बंद करके विश्वास करने के स्थान पर, लोगों को अपने मूल शास्त्रों, विशेषकर उपनिषदों, गीता और पतंजलि योगसूत्र, को पढ़ने और समझने का प्रयास करना चाहिए । शास्त्र-ज्ञान ही पाखंड के अंधकार में विवेक का दीपक जला सकता है । जो व्यक्ति पतंजलि के इस सिद्धांत को समझ लेगा कि सिद्धियाँ बाधा हैं, वह फिर कभी किसी चमत्कार से प्रभावित नहीं होगा ।
तीसरा समाधान है “चमत्कार के स्थान पर गुणों को महत्त्व देना” । हमें समाज में पुनः इस चेतना को स्थापित करना होगा कि किसी संत की महानता उसके शक्ति-प्रदर्शन में नहीं, अपितु उसके चरित्र, त्याग और ज्ञान में निहित है । हमें ऐसे गुरुओं की खोज करनी चाहिए जो हमें आत्मनिर्भर बनाते हों, न कि स्वयं पर आश्रित ।
और चौथा अंतिम समाधान है “साधना के मार्ग का प्रचार” । समाज को यह समझना होगा कि जीवन की समस्याओं का वास्तविक और स्थायी समाधान किसी के चमत्कार में नहीं, बल्कि स्वयं की साधना, पुरुषार्थ, और ईश्वर की सच्ची भक्ति में निहित है । एक सच्चा गुरु आपको कोई चमत्कार नहीं देगा, वह आपको स्वयं इतना सक्षम बना देगा कि आपका जीवन ही एक चमत्कार बन जाए ।
अतः अंत में यह चेतावनी पुनः स्मरण कर लें- जो भी व्यक्ति अपनी शक्तियों का प्रदर्शन कर रहा है, वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक मार्ग से पतित है और उसका एकमात्र उद्देश्य आपका शोषण करना है । उससे उतनी ही दूरी बना लें जितनी एक बुद्धिमान व्यक्ति विषैले सर्प से बनाता है ।